पांडुलिपि और शिलालेख में क्या अंतर है?

क्या आप जानते हैं पांडुलिपि और शिलालेख में क्या अंतर है?



    इतिहास लेखन तीन तरह के स्रोत जैसे साहित्यिक साक्ष्य, विदेशी यात्रियों का विवरण और पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य के आधार पर होता है। पुरानी जगहों के उत्खनन, जीवाश्म के अवशेष, हड्डियों, उपकरण, सिक्के, स्मारकों, अतीत की शिलालेखों के अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न लिखित दस्तावेजों, धार्मिक ग्रंथों, पांडुलिपियों का अध्ययन आदि से इतिहासकारों को भूतकाल में घटी घटनाओ को समझने और अध्ययन करने में सहायता मिलती है।

    पांडुलिपि और शिलालेख में अंतर

    आधार
    पांडुलिपि
    शिलालेख
    विशेषता
    ऐसा दस्तावेज जो हाथ से लिखी गयी हो।
    किसी पत्थर या चट्टान पर खोदी गई लिखित रचना को कहते हैं।
    सामग्री
    यह ताड़ के पत्तों, भूर्ज वृक्ष की छाल, शिखर, काग़ज़, चर्मपत्र आदि पर लिखा गया है।
    यह राजाओं द्वारा, पत्थरों, गुफाओं, स्तंभों की दीवारों जैसी सतहों पर महत्वपूर्ण घटनाओं का उत्कीर्ण किया गया है।
    संरक्षण
    यह नरम सतह जैसे ताड़ के पत्ते, भूर्ज वृक्ष की छाल, काग़ज़, चर्मपत्र आदि पर लिखा गया है तो इसका संरक्षण थोडा मुश्किल होता है।
    यह कठोर सतहों जैसे कि चट्टानों, पत्थर, गुफाओं, खंभे आदि की दीवारों पर लिखा गया था। इसलिए, यह टिकाऊ है, और संरक्षण के लिए कोई विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है।
    सृजन (निर्माण)
    इसे आसानी से फिर से लिखा जा सकता है।
    इसको कठोर सतह पर लिखा गया है तो इसे फिर से बनाने में समय और प्रयास की आवश्यकता होगी।
    स्थायित्व (दीर्घायु)
    अगर इसको ठीक से संरक्षित नहीं किया गया तो जल्दी ही नष्ट हो सकता है।
    यह कठोर  सतह पर उत्कीर्ण किया गया है तो इसको संरक्षित करना आसान होता है।
    परिवर्तन
    इसे आसानी से संशोधित किया जा सकता है क्योंकि यह नरम सतह पर लिखा गया है।
    इसे आसानी से संशोधित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह पत्थर जैसे कठिन सतह पर लिखा गया है।
    उदाहरण
    वेद, पुराण, अभिज्ञानशाकुन्तलम्, संगम साहित्य, अर्थशास्त्र (कौटिल्य)
    अशोक शिलालेख, इलाहाबाद स्तंभ, बोधगया का महानमन शिलालेख, दिल्ली का लोह स्तंभ, रिश्तल शिलालेख, धनेश्वर खेड़ा का बुद्ध छवि शिलालेख
    शिलालेख और पांडुलिपियां इतिहास के अध्ययन के लिए महत्पूर्ण स्रोतों में से एक है। जैसे- मौर्य सम्राट अशोक के इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी उसके महत्वपूर्ण 33 शिलालेखो से मिलती है। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से एक हैं।
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